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जल बुझे सब ख्वाब मेरे......

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.............. सफ़र तो मेरा शुरु हुआ था , जीवन की तरुनाई थी ! अम्मा- बापू के सपनों को , सच करने की ऋत आई थी ! छुटकी के भी थे कुछ सपने , जो मुझको ही सच करने थे! अधबुने कुछ ख्वाब थे मेरे , वो भी पूरे बुनने थे! जल बुझे सब ख्वाब मेरे...... इंसानियत को तार - तार कर , सिसकियों को दर किनार कर, दरिंदगी के जिंदियों ने , आबरू पे जब हाथ फेरे. जल बुझे सब ख्वाब मेरे.... दरिंदगी के चंगुलो में , मैं जो बेबस हो फसी थी अधमरी सी हो गई मैं , जिस्म मेरा नोच डाला ! अश्रुओं की धार से , रूह की चीत्कार से , जो ना पिघले वो दरिंदे,मुझको ही फिर मार डाला ! दर्द कैसे हो बयां अब , मौत भी क्यों मर रही थी? जिस्म मेरा जल चुका था ,रूह मेरी जल रही थी .... जल बुझे सब .... जल बुझे सब ख्वाब मेरे ..........!!!! °~~~~~~~~~~~~~~~°